अगले जन्म मोहे…
कहानी
गीतिका सक्सेना
सुबह- के पांच बजे थे और एडवोकेट निकिता राय अपने एडिडास के स्पोर्ट्स शूज़ और ट्रैकसूट पहने मरीन ड्राइव पर दौड़ लगा रही थी। जेब में नवीनतम आई फ़ोन, कान में एप्पल ईयरपॉड प्रो और कलाई पर एप्पल वॉच सीरीज नाइन, यह सब उसे विरासत में नहीं मिला था बल्कि उसने अपनी मेहनत से कमाया था। पैंतीस साल की उम्र में वो एक कामयाब वकील थी।
गेहुआं रंग मगर तीखे नैन नक्श, बड़ी बड़ी आंखें और करीब पांच फ़ीट सात इंच लंबाई उसे आम लड़कियों से अलग कर देती थी। देखने वाला एक बार दोबारा पलटकर ज़रूर देखता था मगर उसका प्रभावशाली व्यक्तित्व देखकर कोई उसके पास फटकने की कोशिश नहीं करता।
हर बात को बेबाकी से कह देना उसकी आदत थी। उसकी इसी आदत और तेज़ दिमाग ने उसे उच्च कोटि का वकील बना दिया था। जीतना उसे पसंद था और कोर्ट में उसके प्रतिद्वंदी अक्सर ये मान कर आते थे कि उनकी हार निश्चित है। हमेशा कोर्ट में जाने से पहले वो अपने मुवक्किल और प्रतिद्वंदी के विषय में पूरी जानकारी बटोर लेती जिससे सामने वाले के ऊपर हावी होने में उसे वक्त नहीं लगता था। मगर आज उसका तेज़ दिमाग उसका साथ नहीं दे रहा था। अपना पूरा जीवन उसे एक झूठ लग रहा था जैसे वो खुद को ही ना जानती हो। जेब में पड़ा फोन बार बार बज रहा था लेकिन वो बिना देखे ही सारी कॉल्स रिजेक्ट कर एक ही गाना लगातार सुन रही थी, वो था उमराव जान फिल्म से “ अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो “ और लगातार एक ही प्रश्न अपने आप से पूछ रही थी, “क्या बेटी होना कोई गुनाह है”?
कभी कभी जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घट जाती हैं कि मज़बूत से मज़बूत इंसान को भी हिलाकर रख देती हैं। ऐसी ही एक घटना पिछली शाम निकिता की ज़िंदगी में घटी थी।
करीब पैंतीस साल पहले प्रकाश राय और नीलिमा राय के घर एक नन्हीं परी आई जिसका नाम उन्होंने रखा निकिता और सब प्यार से उसे निकी बुलाने लगे। दोनों एक बेटी पाकर बहुत खुश थे और मन ही मन ये ठान चुके थे कि उसे कभी कोई कमी नहीं होने देंगे। प्रकाश और नीलिमा के पहले एक पांच साल का बेटा था – अभिमान जिसे दोनों मान कहा करते थे। मान अपने नाम की ही तरह हमेशा अपने माता पिता का मान बढ़ाता रहा। पढ़ाई में अव्वल, खेल कूद में आगे, बड़ों का सम्मान करना, हमेशा समझदारी की बात करना – ऐसा लगता था जैसे वो कोई बच्चा नहीं बड़ा हो। लेकिन प्रकाश और नीलिमा का मन फ़िर भी एक बेटी के लिए तरसता था। और बहुत लंबे समय बाद जब उनकी ये कामना पूरी हुई तो दोनों खुशी से फूले नहीं समाए। बैंड बाजे के साथ बेटी को घर लाए और एक राजकुमारी की तरह उसका स्वागत किया। घर में आते ही वो तीनों की लाडली हो गई। मान को खेलने के लिए एक साथी मिल गया। वो अकसर नीलिमा से पूछता, “मां, ये कब तक पालने में रहेगी? मेरे साथ कब खेलेगी?” और नीलिमा हंसकर कहती, “अभी थोड़ा वक्त लगेगा बेटा। लेकिन तुम इसके बड़े भाई हो ना इसलिए हमेशा इसका ध्यान रखना। इसे कभी कोई तकलीफ़ मत होने देना”। मां की ये बात जैसे मान के दिमाग़ में बस गई। धीरे धीरे समय बीतता गया और निकिता करीब आठ वर्ष की हो गई लेकिन घर में अब भी सबकी लाडली थी मान भी पूरी कोशिश करता कि उसकी आंखों में एक भी आंसू ना आए। निकिता अपने माता पिता से बेहद प्यार करती थी मगर भाई तो जैसे उसका सब कुछ था। मान के बिना वो एक मिनिट भी रहना नहीं चाहती थी। बस दिन रात उसी के पीछे पीछे घूमती रहती।
प्रकाश राय एक करोड़पति व्यापारी थे। उनकी अपनी कपड़े की मिल थी। घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी। उनके माता पिता अब जीवित नहीं थे। पत्नी और बच्चों के अलावा बस एक छोटा भाई था प्रताप और उसकी पत्नी रीमा। प्रताप और रीमा के कोई संतान नहीं थी जिस कारण रीमा का व्यवहार दिन पर दिन कड़वा होता जा रहा था। प्रकाश के भरे पूरे परिवार से तो उसे विशेष चिढ़ थी। प्रताप भी पहले भाई के साथ ही व्यापार करता था लेकिन फ़िर आपसी सहमति से दोनों भाइयों ने अपना अपना काम अलग कर लिया। दोनों जानते थे कि रीमा की चिढ़ का असर कभी भी उनके आपसी संबंधों पर पड़ सकता है।
प्रकाश दिन पर दिन तरक्की करते गए लेकिन प्रताप जो था उसी में संतुष्ट था वो अक्सर सोचता कि संतान तो है नहीं फ़िर किसके लिए व्यापार को ज़्यादा बढ़ाना और वैसे भी उसके पास भी पैसे की कोई कमी नहीं थी। दोनों भाई पहले अक्सर ही परिवार सहित एक दूसरे के घर जाया आया करते थे। मगर जब भी वो मिलते रीमा निकिता के साथ बहुत ख़राब व्यवहार करती। हर बात में उसकी कमी निकालना, उसे डांटना उसकी आदत थी। जब भी नीलिमा या कोई और उसे समझाने की कोशिश करता तो वो निकिता के लड़की होने का ताना देकर सबका मुंह बंद कर देती। दूसरी तरफ़ प्रताप कभी निकिता पर कोई कटाक्ष नहीं करता था लेकिन हमेशा ही उस से दूरी बनाए रखता। बेचारी निकिता अक्सर ही ये सोचती कि आख़िर उसके चाचा चाची उस से इतनी नफ़रत क्यों करते हैं। कभी कभी वो अपने माता पिता से पूछती भी पर दोनों कोई ना कोई बहाना बनाकर बात घुमा देते। घर का एक और सदस्य जो ये सब देखकर आग बबूला होता वो था – मान। घर में जहां कोई निकिता से ज़ोर से बोलता भी नहीं था वहां चाची को बेवजह उसे ताने मारते देखना उसके लिए मुश्किल होता जा रहा था। वो गुस्से में लाल मुंह किए और दोनों हाथों की मुट्ठियां भीचे अपनी चाची को घूरता। आख़िर प्रकाश और नीलिमा ने प्रताप और रीमा से दूरी बनाने का फ़ैसला ले लिया।
अब दोनों परिवार कभी कभी ही मिलते मगर रीमा का व्यवहार निकिता के प्रति बिल्कुल नहीं बदला। निकिता ने कई बार प्रकाश और नीलिमा से रीमा की कड़वाहट की वजह जानना चाही लेकिन वो दोनों ही हमेशा ये कहकर टाल देते कि निःसंतान होने की वजह से वो चिढ़चिढ़ी हो गई थी। निकिता अपने माता पर ज़्यादा ज़ोर नहीं दे पाई लेकिन उसे कभी समझ नहीं आया कि चाची अपनी चिढ़ पूरे परिवार में सिर्फ़ उसी पर क्यों उतारती है। क्यों वो मान को कभी कुछ नहीं कहती। बेचारे प्रकाश और नीलिमा असली वजह जानते हुए भी नहीं बता सकते थे क्योंकि रीमा की चिढ़ का कारण था निकिता के जन्म का रहस्य। जिसे दोनों परिवारों ने कभी ना उजागर करने का वादा किया था।
जैसे जैसे निकिता बड़ी होने लगी उसे समझ आ गया कि रीमा को निकिता से नहीं बल्कि उसके लड़की होने से परेशानी है। उसने उसे छोटी सोच वाली बेवकूफ महिला समझकर नज़रंदाज़ करना शुरू कर दिया मगर इस बात ने उसके दिमाग़ पर गहरा असर किया और वो ये सोचने पर मजबूर हो गई कि ना जाने कितने परिवारों में बेटियों का इस तरह तिरस्कार होता होगा। वो करीब चौदह साल की थी जब उसने ये दृढ़ निश्चय कर लिया कि उसे दुनिया को कुछ कर दिखाना है, अपने पिता के नहीं अपने बल बूते पर अपनी एक पहचान बनानी है और समाज को ये बताना है कि बेटियां बोझ नहीं होतीं। प्रताप और रीमा से बिल्कुल उलट प्रकाश और नीलिमा खुले विचारों के लोग थे। उनके लिए बेटा और बेटी में कोई फ़र्क नहीं था। प्रकाश हमेशा मान और निकिता को समझाते कि जो बात मान के लिए सही है वो निकिता के लिए भी सही है और जो निकिता के लिए गलत है वो मान के लिए भी गलत है। नीलिमा ने भी अपने दोनों बच्चों से एक सा ही व्यवहार किया। जितना घर का काम वो निकिता को सिखाती उतना ही मान को भी सिखाया। हालांकि उनके घर में कई नौकर थे मगर नीलिमा चाहती थी कि उसके दोनों बच्चे आत्मनिर्भर हों। जब नीलिमा ने मान को ताइक्वांडो सिखाया तो निकिता को साथ में भेजा उसका मानना था कि लड़कियों को भी अपनी रक्षा स्वयं करनी आनी चाहिए उसके लिए वो किसी पुरुष पर निर्भर क्यों हो।
अपनी इसी परवरिश की वजह से निकिता बेबाक, निडर, बुद्धिमान और स्वतंत्र विचारधारा की मालिक थी। और उसकी इन खूबियों का उसके एक सफ़ल वकील होने में बहुत बड़ा हाथ था।
कुछ समय बीता तो मान टेक्सटाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके एमबीए करने विदेश चला गया और पढ़ाई पूरी होने पर उसने करीब तीन साल वहीं एक टेक्सटाइल फैक्ट्री में नौकरी कर ली। वो अपने पिता के कारोबार को नई ऊंचाइयों तक ले जाना चाहता था इसलिए पहले एक आम इंसान की तरह काम सीखना और समझना चाहता था। जब मान ने लौटकर पिता का कारोबार संभाला तब निकिता मुंबई यूनिवर्सिटी से पांच साल की एलएलबी की पढ़ाई कर रही थी। जैसे ही एलएलबी पूरी हुई तो निकिता को एक बहुत बड़े वकील के साथ काम करने का मौका मिला और उसने उनके ऑफिस में बतौर सहायक नौकरी करनी शुरू कर दी। जब कुछ महीने बीत गए तो मान ने उसे सलाह दी कि उसे एलएलएम करने विदेश जाना चाहिए और फ़िर वापस आकर अपना खुद का ऑफिस बनाना चाहिए। निकिता को मान की बात समझ आ गई और कुछ ही समय बाद वो आगे की पढ़ाई करने लंदन चली गई।
दो वर्ष बाद जब वो वापस लौटी तो आत्मविश्वास से लबरेज़ एक नई निकिता थी। विदेश में माता पिता और भाई के साए से बाहर निकलकर उसका व्यक्तित्व और निखर गया था। वहां की प्रगतिशील और महिलाओं और पुरुषों के समान होने की सोच ने उसे काफ़ी प्रभावित किया था। लंदन से वापस आकर निकिता ने अपने लिए एक दफ़्तर बनाया और अपनी खुद की प्रैक्टिस शुरू कर दी।
इतने वर्षों में काफ़ी कुछ बदला लेकिन एक चीज़ जो नहीं बदली वो था निकिता के प्रति रीमा का व्यवहार। जब निकिता ने एलएलबी में दाखिला लिया तब रीमा कहती थी, “लड़की का दिमाग खराब हो जाएगा। घर में और ससुराल में सबसे बहस करेगी”। जब निकिता पढ़ने विदेश गई तब उसने कहा,” प्रकाश भाई साहब लड़की के ऊपर कितना पैसा बरबाद कर रहे हैं आख़िर एक दिन तो उसकी शादी ही करनी है”। फ़िर जब निकिता ने अपना ऑफ़िस खोला तब भी रीमा चुप ना रही और बोली,” इतना आसान है क्या अपना दफ़्तर चलाना। लड़की ना जाने अपने आप को क्या समझती है”। सच तो ये था कि उसने अपनी कुंठा से ऊपर उठकर कभी निकिता को समझा ही नहीं। उसका दिमाग बस एक ही बात पर अटका रहा कि वो एक लड़की है और उसे प्रकाश और नीलिमा इतना अच्छा जीवन क्यों दे रहे थे।
चाची का दुर्व्यवहार कहीं ना कहीं निकिता को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहा। ऐसा नहीं था कि उसे किसी बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था मगर वो अपने गुस्से को अपनी कामयाबी का जरिया बनाती गई। जैसे हर सीढ़ी पर रीमा को चिढ़ा रही हो कि तुम मुझे जितना नीचे खींचोगी मैं उतना ही ऊपर चढ़ती जाऊंगी। यूं ही समय बीतता गया और निकिता राय कानून जगत में एक जाना पहचाना नाम बन गया। कई बार वकील उसका नाम सुनकर ही मुकदमा छोड़ देते थे। उसकी आंखें जैसे सच और झूठ देखते ही पहचान लेती थीं। किसी भी केस के लिए वो दिन रात एक कर देती; ना खाने का होश, ना सोने की चिंता। निन्यानवे प्रतिशत मुकदमे वो जीतकर ही दम लेती थी। जब नाम हुआ तो रसूखदार रईस लोगों से भी उसकी जान पहचान बढ़ गई। अक्सर ही किसी न किसी अख़बार में उसका फ़ोटो छपा करता। कड़ी मेहनत के बाद आज वो इस मकाम पर पहुंची थी।
निकिता की कामयाबी सब देख, सुन और पढ़ रहे थे। मगर एक इंसान जिसे अचानक ही निकिता में बहुत दिलचस्पी हो गई थी वो थी – रीमा। अपने चौंतीसवें जन्मदिन पर निकिता ने एक जानी मानी हस्ती का मुकदमा जीता और इसलिए वो हर अख़बार की सुर्खियों में छाई हुई थी। उसकी इसी जीत और उसका जन्मदिन मनाने के लिए मान और प्रकाश ने मिलकर जश्न मनाने का फैसला किया। शहर का हर मशहूर व्यक्ति उस समारोह में शरीक था। रीमा और प्रताप भी थे। निकिता ने जैसे ही अपने जन्मदिन का केक काटा रीमा उसे केक खिलाने के लिए आगे बढ़ गई। यह देखकर सब आश्चर्यचकित रह गए कि हर कदम पर निकिता को ताने देने वाली रीमा आज ख़ुद उसे केक खिला रही थी। निकिता खुद इतनी हक्की बक्की रह गई कि मुंह खोलने के अलावा कुछ ना कर सकी। मान, जो हमेशा पूरी कोशिश करता कि रीमा को निकिता से दूर रखे, वो भी चुप खड़ा देखता रह गया। प्रकाश और नीलिमा भी बस एक दूसरे की शक्ल देखते रह गए कि आख़िर हुआ क्या। बस उस दिन से रीमा का रवैया निकिता के प्रति बदल गया।
पहले तो सभी को ये बात समझ नहीं आई पर कुछ महीने बीतने पर प्रकाश और नीलिमा ने सोचा शायद बढ़ती उम्र के साथ अब रीमा भी बड़ी हो गई थी। लेकिन सब कुछ करने के बावजूद मान और निकिता को रीमा पर भरोसा नहीं हुआ। निकिता रीमा की बेइज्जती नहीं करना चाहती थी इसलिए चुप रहती थी मगर वो बेवकूफ़ नहीं थी। रीमा अक्सर प्रकाश के घर आती। कभी निकिता को बधाई देती, कभी उसकी कोई मनपसंद चीज़ बना लाती, कभी प्यार से निकिता के सिर पर हाथ फेरती तो कभी उसकी नज़र उतारती। ऐसा लगता मानो किसी ने निकिता के लिए उसके अंदर ममता का बटन चालू कर दिया हो।
निकिता उसके इस बदले व्यवहार से बहुत परेशान थी। कई बार वो इस बदलाव का कारण समझने की कोशिश करती लेकिन हर बार असफल रहती।
आख़िर ठीक निकिता के पैंतीसवें जन्मदिन से पहली शाम को रीमा ने अपने बदलाव का कारण सबको बता दिया और निकिता को फ़िर भरोसा हो गया कि वो अब भी उतनी ही खुदगर्ज और असंवेदनशील है जितनी पहले थी। हर साल की तरह इस साल भी मान रात को बारह बजे निकिता का जन्मदिन मानने की तैयारी कर रहा था। दिन में निकिता अक्सर सबके साथ व्यस्त हो जाती इसलिए रात को बारह बजे केक काटकर ही चारों आपस में उसका जन्मदिन मना लेते। यह समय बस उन चारों का अपना होता था और कोई पाँचवाँ इस में शामिल नहीं होता था। और इस साल तो वो दोहरा जश्न मना रहे थे। कुछ ही समय में मान की शादी उस की दोस्त, इति, से होने जा रही थी। मगर एक बार फ़िर रीमा ने प्रताप के साथ वहां पहुंचकर सबको चौंका दिया।
किसी को रीमा का बेवक्त वहां पहुंचना अच्छा नहीं लगा। निकिता और मान को तो बिल्कुल नहीं। फ़िर भी सब चुप रहे। जैसे ही निकिता ने केक काटा एक बार फिर रीमा ने आगे बढ़कर उसे केक खिलाने की कोशिश की। मगर आज निकिता से चुप नहीं रहा गया। उसने तुरंत ही रीमा का हाथ रोकते हुए नीलिमा से कहा, “मम्मा, सबसे पहले आप मुझे केक खिलाओ”। अभी नीलिमा आगे बढ़ी ही थीं कि रीमा ने आग बबूला होते हुए कहा, “तुम्हारी मां ही पहले तुम्हें केक खिला रही है”। उसके इतना कहते ही जैसे कमरे में सन्नाटा छा गया। निकिता और मान को तो कुछ समझ ही नहीं आया। प्रकाश ने गुस्से से प्रताप की तरफ़ देखा तो वहीं नीलिमा के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं। बस रीमा ही अकेली सबके चेहरे देख कर मुस्कुरा रही थी। प्रताप ने गुस्से में उस से कहा, “क्या बकवास कर रही हो रीमा? अपना मुंह बंद रखो”। मगर रीमा कहां सुनने वाली थी, वो तो कई दिन से इस क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी। उसने पलटकर जवाब दिया, “ झूठ क्या कहा मैंने? इसे मैंने ही पैदा किया है ना तो मैं ही इसकी मां हुई”। निकिता तो जैसे सन्न रह गई। नीलिमा ने आगे बढ़कर रीमा से कहा, “ये क्या कर रही हो? हम सबने फ़ैसला किया था कि इस बात को कभी उजागर नहीं करेंगे”। इसपर रीमा बोली,” हां, तब किया था लेकिन अब मैं सच निकी को बताना चाहती हूं। मैं चाहती हूं वो मुझे मां कहे और मैं भी सबके सामने उसे अपनी बेटी कह पाऊं”।
यह सुनकर नीलिमा का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उसने गुस्से से कहा, “ मां! तुम मां शब्द के नाम पर धब्बा हो रीमा। मुझे हंसी आती है तुम्हारे मुंह से ये शब्द सुनकर। जिस औरत ने अपनी औलाद की शक्ल देखने से मना कर दिया, उसे पालने से मना कर दिया सिर्फ़ इसलिए कि वो एक लड़की है। आज वो औरत उसी बच्ची की मां बनना चाहती है। समझ नहीं आ रहा हसूं या रोऊं”। “आप चाहे हंसो या रो भाभी मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे तो सिर्फ़ अपनी बेटी से मतलब है”। कहकर रीमा निकिता की तरफ़ बढ़ी और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली, “निकिता बेटा मैं ही तुम्हारी मां हूं, यही सच है”। मगर निकिता तो जैसे कुछ बोलने की हालत में ही नहीं थी। उसने झटके से रीमा का हाथ अपने कंधे से हटा दिया। ये देखते ही मान ने उसे रीमा से अलग कर दिया और बोला, “आप जो कोई भी हो चाची मगर बेहतर होगा फ़िलहाल आप निकी से दूर रहें”। रीमा ने तमतमाकर कहा, “ मैं क्यों दूर रहूं? मैं सच कह रही हूं, मैंने ही इसे पैदा किया है”।
“सच” इस शब्द ने जैसे निकिता को किसी नींद से जागा दिया। उसने प्रकाश की ओर देखकर पूछा, “डैडी, मैं आपसे सच सुनना चाहती हूं। पूरा सच”। प्रताप को एक तरफ़ ये डर था कि ना जाने सच जानने के बाद निकिता क्या करेगी मगर दूसरी तरफ़ वो ये भी समझ गए थे कि अब कुछ भी छुपाने का कोई फायदा नहीं है। इसलिए उन्होंने कहना शुरू किया, “ये सच है बेटा कि रीमा और प्रताप जन्म से तुम्हारे माता पिता हैं लेकिन ये भी सच है कि इन दोनों को एक बेटा चाहिए था। जब तुम्हारा जन्म हुआ और इन्हें पता चला कि बेटी हुई है तो दोनों बहुत दुखी हो गए। ये दोनों ही एक लड़की को पालना नहीं चाहते थे, पालना तो दूर उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहते थे। हमें इन दोनों पर बहुत गुस्सा आया और हमने इन्हें समझाने की बहुत कोशिश की मगर इनका रोना पीटना बंद ही नहीं हुआ। मैं और नीलिमा हमेशा ही बेटी के लिए तरसते थे इसलिए हम दोनों ने वहीं हॉस्पिटल में तुम्हें गोद लेने का प्रस्ताव इन दोनों के सामने रखा और ये दोनों तो जैसे उस बच्ची से पीछा छुड़ाना ही चाहते थे सो तुरंत मान गए और पैंतीस साल पहले तुम्हारे जन्म के दिन ही हमने तुम्हें गोद ले लिया और हॉस्पिटल से घर ले आए। बाकी तो सब तुम जानती ही हो”। इतना कहकर प्रकाश ने निकिता के सर पर हाथ फेरा और एक तरफ़ खड़े हो गए। वो उसे कुछ भी समझाने से पहले निकिता को समय देना चाहते थे कि वो इस सत्य से सामंजस्य स्थापित कर सके।
अभी प्रकाश चुप हुए ही थे कि प्रताप ने कहा,” जो कुछ भी भाई साहब ने कहा सब सच है निकिता। मैं और रीमा कभी बेटी चाहते ही नहीं थे। जब सोचता हूं क्यों तो कोई सही जवाब नहीं आता ज़ेहन में। पहले लगता था लड़कियां सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी हैं। पढ़ाओ- लिखाओ, पालो – पोसो और शादी करके किसी दूसरे के घर भेज दो। मगर आज जब तुम्हें देखता हूं तो अपनी ही सोच बचकानी और बेवकूफी भरी लगती है। ख़ैर हम चारों ने ये फ़ैसला किया था कि इस बात को हमेशा राज़ ही रखेंगे मगर ना जाने आज रीमा के दिमाग़ में क्या फितूर उठा है, इसने क्यों ये बात छेड़ी मैं नहीं जानता”।
मान सब सुनकर गुस्से से आग बबूला हो रहा था। आज चुप रहना उसके बस की बात नहीं थी। उसने चिल्लाकर कहा, “तो चाची आप ही क्यों नहीं बता देती कि अचानक ये मां बनने का ड्रामा क्यों कर रहीं हैं आप”? मान की गरजती हुई आवाज़ सुनकर रीमा सहम गई लेकिन फ़िर खुद को संभालकर बोली,” मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है इसलिए। मैं प्रताप की तरह कायर नहीं जो गलती समझ आने पर भी चुप रहूं”। इतना सुनते ही मान की हंसी छूट गई और वो बोला,” पैंतीस साल लगे आपको अपनी गलती का एहसास करने में। और हां जिसे आप अपनी बहादुरी कह रही हैं वो और कुछ नहीं आपकी बेशर्मी है। आप पहले भी संवेदनहीन थीं आज भी वही हैं”।
मान की बात को नज़रंदाज़ कर रीमा निकिता के पास आई और बोली, “निकी मैं सच कह रही हूं। मुझे अपनी गलती का एहसास है। मैं तुम्हें अपनी बेटी के रूप में अपनाना चाहती हूं “।
उसके इतना कहते ही निकिता अपने कमरे की तरफ़ चल दी। अभी कुछ कदम बढ़ी ही थी कि नीलिमा ने उसे रोककर कहा,” बेटा, चाहे तुम कुछ भी फ़ैसला लो ये बात हमेशा याद रखना कि तुम इस घर की बेटी हो और हमेशा रहोगी। ये सच हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता”। प्रकाश ने भी हामी भरकर पत्नी की बात का समर्थन किया और मान भी आगे बढ़कर उस से कहा, “ तू हमेशा ही मेरी प्यारी बहन रहेगी निकी। ये सच स्वीकार करना मेरे लिए भी मुश्किल है लेकिन सच ये भी है कि मुझे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं आज भी तेरा भाई हूं। तेरी आंखों में आंसू मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता और जो भी तुझे रुलाएगा मैं उसे सज़ा ज़रूर दूंगा”। बस हां में सिर हिला कर निकिता अपने कमरे में चली गई।
उसके जाते ही प्रकाश ने प्रताप से कहा, “ अब तुम दोनों अपने घर जा सकते हो और आज के बाद तुम्हारा और हमारा कोई संबंध नहीं है। रही बात निकिता की तो वो जो भी फ़ैसला लेगी खुद तुम्हें बता देगी। अगर वो तुमसे मिलना चाहेगी मैं उसे कभी नहीं रोकूंगा लेकिन तुम्हारा इस घर से और हम तीनों से अब कोई रिश्ता नहीं है”। रीमा कुछ कहने को ही थी कि प्रताप ने उसे घूरकर देखा और कहा,” खबरदार अगर अब और कुछ कहा। घर चलो”। इतना कहकर प्रताप ज़बरदस्ती हाथ पकड़कर रीमा को वहां से ले गया।
ये पूरा ड्रामा निबटते निबटते रात के तीन बज गए और प्रकाश, नीलिमा और मान तीनों अपने अपने कमरे में चले गए। निकिता अपने कमरे में करवटें बदल रही थी मगर नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। मान उसके पास जाना चाहते था मगर प्रकाश ने उसे ये कहकर रोक दिया कि उसे निकिता को थोड़ा समय देना चाहिए। आख़िर करीब पांच बजे निकिता ने अपनी रेंज रोवर की चाबी उठाई और गाड़ी मरीन ड्राइव की तरफ़ दौड़ा दी। प्रकाश और नीलिमा ने उसकी गाड़ी की आवाज़ सुनी थी लेकिन उन्हें अपनी बेटी की समझदारी पर पूरा भरोसा था इसलिए उन्हें कोई चिंता नहीं हुई। लेकिन दो लोगों से सब्र नहीं हो रहा था और वो लगातार उसे फ़ोन मिला रहे थे। वो थे – मान और रीमा। मान क्योंकि उसे निकिता की चिंता हो रही थी और रीमा क्योंकि वो किसी भी कीमत पर निकिता को अपनाना चाहती थी। मगर निकिता किसी से बात नहीं करना चाहती थी इसलिए सबका फोन काट रही थी।
यूं ही दौड़ते दौड़ते पांच से सात बज गए। इन दो घंटों में निकिता ने बचपन से लेकर अभी तक की अपनी ज़िंदगी जैसे दोबारा जी ली। इतनी देर वो केवल प्रकाश, नीलिमा और मान के साथ बिताए वक्त को ही याद करती रही। मगर कुछ सवाल उसके दिमाग़ में लगातार घूम रहे थे। पहला ये कि क्या उसे रीमा को माफ़ कर देना चाहिए? और दूसरा ये कि क्या रीमा का दिल उतना ही साफ़ हो गया है जितना वो दिखा रही है या उसकी कुछ और मंशा है? पसीनों में तर बतर निकिता घर लौटने की सोच ही रही थी कि मान का फ़ोन आ गया। जैसे ही निकिता ने हेलो कहा मान ने सिर्फ़ इतना पूछा कि वो कहां है और जैसे ही निकिता ने जवाब दिया मैरीन ड्राइव उसने फोन काट दिया। अब निकिता वहीं अपनी कार के पास खड़ी हो गई। उसे अपने भाई की आदत पता थी। कुछ ही देर बाद एक बेंटले कार उसकी गाड़ी के पास रुकी और उस में से उतरकर मान ने ड्राइवर को अपनी गाड़ी वापस ले जाने का इशारा किया और आकर निकिता को गले लगा लिया।
“ये क्या हरकत है निकी? घर में सब कितने परेशान हैं, फोन क्यों नहीं उठा रही”? कुछ गुस्सा दिखाते हुए वो बोला। उसका नकली गुस्सा देखकर निकिता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और उसने कहा, “घर पर कोई परेशान नहीं है भाई सिवाय आपके। मम्मा और डैडी ने मुझे एक भी फोन नहीं किया क्योंकि उन्हें मुझपर भरोसा है। बस एक आप ही फोन पर फोन मिलाए जा रहे हैं”। “तो फ़िर उठा क्यों नहीं रही, मुझे कितनी चिंता हो रही थी”, मान ने पूछा। “अरे भाई आपको “स्पेस” शब्द का मतलब पता है या नहीं ? मैं कुछ समय अकेले रहना चाहती थी। सोचना चाहती थी कि अब क्या करूं और इस सच को स्वीकार करना चाहती थी कि मुझे मम्मा ने जन्म नहीं दिया”। निकिता ने इतना कहा ही था कि मान बोल पड़ा, “इस बात से क्या फ़र्क पड़ता है। तू हमेशा मेरी बहन और मम्मा डैडी की बेटी रहेगी। बहुत हो गया ड्रामा अब घर चल और हां गाड़ी मैं चलाऊंगा”।
अभी निकिता गाड़ी में बैठी ही थी कि उसका फोन फिर बजा। निकिता ने देखा रीमा का फोन है। उसने फोन उठाकर बस उस से इतना ही कहा कि वो और प्रताप कुछ देर में राय मैंशन पहुंच जाएं। इतनी देर सोच विचार करने के बाद निकिता आखिर एक फ़ैसले पर पहुंच गई थी। रास्ते में मान ने निकिता को बताया कि कैसे प्रकाश ने रीमा और प्रताप से सारे रिश्ते खत्म करके उन्हें घर से निकल दिया था।
जैसे ही मान और निकिता घर पहुंचे तो प्रकाश और नीलिमा लॉबी में ही बैठे दोनों का इंतज़ार कर रहे थे । निकिता उन्हें देखते ही दोनों के गले लग गई। उसे कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, दोनों उसके मन की बात यूं ही समझ गए। तभी रीमा और प्रताप भी वहां पहुंच गए। उन्हें देखते ही प्रकाश ने गरज कर पूछा,” तुम दोनों यहां कैसे”? मगर निकिता ने बीच में ही कहा, “इन्हें मैंने बुलाया है डैडी। मैं ये पूरा मसला आज ही खत्म कर देना चाहती हूं “।
निकिता ने रीमा और प्रताप को बैठने का इशारा किया और खुद “अभी आती हूं” कहकर अपने कमरे में चली गई। जब वो वापस लॉबी में आई तो वही दबंग निकिता राय बनकर जिससे सब डरते थे।
उसने सबसे पहले रीमा से कहा,” मैं आपसे ये पूछना चाहती हूं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि पिछले साल मेरे चौंतीसवें जन्मदिन से आपका हृदय परिवर्तन हो गया? जहां तक मैं समझ पाई हूं आपको बेटी नहीं चाहिए थी और मैं आज भी लड़की हूं”। रीमा ने जवाब दिया,” बेटा तुम कोई आम लड़की नहीं हो। तुम आज जहां खड़ी हो किसी भी मां बाप को तुम पर नाज़ हो सकता है। तुमने हमारी इस धारणा को गलत साबित कर दिया कि लड़कियां सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी हैं। बस यही कारण था कि मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया”। रीमा ने शब्दों का ताना बाना तो अच्छा बुना था मगर वो भूल गई कि शब्दों से खेलना ही निकिता का काम था। “वाउ मिसेज रीमा राय! अमेजिंग! तो मेरा नाम, रुतबा, धन दौलत देखकर आपका हृदय परिवर्तन हो गया। आपको आज भी बेटी नहीं अपने दोस्तों को, समाज को दिखाने के लिए एक ट्रॉफी चाहिए। मुझे आपसे ऐसी ही उम्मीद थी। पहले आप पर तरस आता था कि आपकी सोच छोटी है लेकिन अब आपसे नफ़रत हो गई है। आज मैं आपको अपना परिचय देती हूं। मैं हूं एडवोकेट निकिता राय। मेरे माता पिता का नाम है, श्री प्रताप राय और श्रीमती नीलिमा राय। मेरे भाई का नाम है अभिमान राय। मैं आज जो कुछ भी हूं इन तीनों की वजह से हूं। अगर किसी को मेरी उपलब्धियों पर गर्व करने का अधिकार है तो इन तीनों को। आपके अंदर अगर ममता इतनी ही जाग रही है तो जाकर किसी अनाथ आश्रम से एक बच्ची गोद ले लीजिए और उसकी सफ़लता का कारण बनिए। मैं कोई अनाथ नहीं हूं और हां मैं आपकी शुक्रगुजार हूं कि आपने मुझे डैडी और मम्मा को दे दिया क्योंकि आपके घर में तो ना जाने मैं कैसे पलती और यहां इन लोगों ने मुझे राजकुमारी की तरह पाला है। इन से अच्छे माता पिता तो हो ही नहीं सकते। अब आप दोनों जा सकते हैं, आप दोनों से आज के बाद मेरा कोई संबंध नहीं है। आपने अपनी नवजात बच्ची के साथ जो भी किया शायद आपके उन्हीं कर्मों का फल है कि आप निःसंतान हैं”। अभी रीमा कुछ कहने को ही थी कि प्रताप ने गरज कर कहा, “और कितनी बेइज्जती करवाओगी रीमा? तुम्हारी वजह से आज मेरा अपने भाई से कोई रिश्ता नहीं रहा। तुम निहायती खुदगर्ज औरत हो”। इतना कहकर प्रताप रीमा को खींचकर बाहर ले गया।
निकिता ने पलटकर देखा तो मान मंद मुस्कान के साथ उसे देख रहा था और प्रकाश और नीलिमा की आंखों से आंसू बह रहे थे। उसने जल्दी से दोनों को गले लगा लिया और कहा, “आई लव यू मम्मा डैडी। आपके जैसे माता पिता मिलेंगे तो मैं अगले जन्म में भी बेटी ही बनना चाहूंगी”। इतना कहकर निकिता ने ऊपर आसमान की तरफ़ देखा और मानो भगवान से प्रार्थना कह रही हो, ” अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो”।
– गीतिका सक्सेना
बंगला नंबर 210 बी,
वेस्ट एंड रोड
सदर घंटाघर के सामने
मेरठ कैंट, उत्तर प्रदेश।
9910725179
gsaxena1809@gmail.com