सैनिक से योगी होने तक का सफर : योग गुरु पूरणमल यादव की अनोखी संघर्ष यात्रा !

ओलंपिक का सपना टूटा, मगर हौसला नहीं !

 

सेना छोड़ कर अपनाया योग पथ, अब बच्चों, युवाओं और आमजन को बना रहे योग जागरूक !

17 वर्षों में 950 से अधिक संस्थानों में सिखाया निःशुल्क योग, लगभग 9 लाख लोगों को दिखाई योग की राह !

कोटपूतली-बहरोड़-
जिले की पावटा तहसील के ग्राम भोनावास कुनेड़ की ढाणी मान्यावाली निवासी योगगुरु पूरणमल यादव की कहानी एक ऐसे योग साधक की कहानी है जिसने व्यक्तिगत सपनों की राख से जनसेवा की अग्नि प्रज्वलित की। ओलंपिक में भारत का नाम रोशन करने का सपना देखा, सेना में नौकरी की, परंतु एक दुर्घटना ने सब बदल दिया। सपनों का द्वार भले बंद हुआ हो परंतु उन्होंने योग को सेवा का माध्यम बना लिया। वर्ष 2008 से अब तक वे कोटपूतली-बहरोड़, जयपुर, सीकर, अलवर, भरतपुर, अजमेर, श्रीगंगानगर समेत प्रदेश के अनेक जिलों के 950 से अधिक सरकारी व निजी संस्थानों में निःशुल्क योग प्रशिक्षण देकर करीब 9 लाख लोगों को लाभान्वित कर चुके हैं। हास्य योग, प्राणायाम, ध्यान व मानसिक संतुलन की क्रियाओं से उन्होंने विद्यार्थियों, कर्मचारियों और आमजन के जीवन में नया विश्वास भरा है।

सेना से योग पथ तक की यात्रा—–
पूरणमल यादव ने सन् 2001 में भारतीय सेना जॉइन की परंतु ओलंपिक की तैयारी में बाधा आने पर 2005 में सेवा छोड़ दी। दुर्भाग्यवश अभ्यास के दौरान पैर में फ्रैक्चर हो गया और ओलंपिक का सपना अधूरा रह गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। राजस्थान विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एमए व रामानंदाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय से पीजी डिप्लोमा किया। बैंगलुरु के विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान से योग शिक्षा ली और 2008 में योग सेवा का संकल्प लिया।

योग को बनाया जनआंदोलन—–
पूरणमल यादव न केवल निःशुल्क योग सिखाते हैं बल्कि अपने खर्चे से “बेनिफिट्स ऑफ योगा” के पंपलेट छपवाकर स्कूल-कॉलेजों और कोचिंग संस्थाओं में बाँटते हैं। उनका मानना है कि युवाओं को योग के माध्यम से आत्मविश्वासी, स्वावलंबी और अपराध मुक्त बनाया जा सकता है। योग वह माध्यम है जिससे व्यक्ति सिर्फ शरीर ही नहीं बल्कि आत्मा तक से जुड़ जाता है। योग गुरु पूरण मल यादव अनेक प्रकार के हास्य योग, अनुलोम विलोम , कपालभाती, अर्धकटी चक्रासन, ताड़ासन, गोमुखासन, श्वास की क्रियाएं, भ्रामरी, ओम का उच्चारण व ध्यान योग सहित अनेक योग क्रियाओ के माध्यम से आमजन, बच्चे, बुजुर्गों व युवाओं को योग के प्रति जागरुक कर रहे हैं। 17 वर्षों की निःस्वार्थ सेवा में कोई सरकारी सहायता नहीं मिली लेकिन सेवा का भाव यथावत बना हुआ है। वे चाहते हैं कि राजस्थान ही नहीं पूरे भारत और विदेशों में भी योग के माध्यम से स्वास्थ्य जागरूकता फैलाएं। लेकिन संसाधनों की कमी उन्हें रोक रही है। अब सरकार, समाजसेवियों, भामाशाहों और संस्थानों से सहयोग की अपील भी कर रहे हैं। योग सेवा में रत पूरणमल यादव अब तक अविवाहित हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि के कारण कम उम्र में ही बहुत रिश्ते आए परंतु उन्होंने बाल विवाह का विरोध करते हुए इनकार कर दिया था।

इनका कहना है—–

योग है समाधान—–
“योग न केवल बीमारी बल्कि लालच, तनाव, क्रोध और भ्रम का भी समाधान है। सब रोगों की एक ही दवा योग हैं। अगर जीवन में सच्चा सुख चाहिए तो योग अपनाना होगा। कभी-कभी मन में गिनीज बुक में रिकॉर्ड बनाने का विचार आता है, मगर फिर सोचता हूं कि सेवा में अहंकार नहीं होना चाहिए।”

योगगुरु पूरणमल यादव-( कोटपूतली-बहरोड़ )

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