प्रखर राजनीतिज्ञ कुशल कवि- अटल बिहारी वाजपेयी

जन्म दिवस पर विशेष

उषा गुप्ता
टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ

 

अटलजी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के धनी थे। भाजपा में एक उदार चेहरे के रूप में उनकी पहचान थी।

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में रहने वाले एक स्कूल शिक्षक के परिवार में हुआ। पिता कृष्णबिहारी वाजपेयी हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। अत: काव्य कला उन्हें विरासत में मिली। उन्होंने अपना करियर पत्रकार के रूप में शुरू किया था और राष्‍ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया।

अटल जी ने हमेशा जीवन की चुनौतियों का आगे बढ़कर सामना किया। अपने राजनीतिक जीवन में कविताओं से लोगों का मन मोहने वाले अटल जी की कुछ कविताएं तो दिल को छू जाती हैं।

ज़िक्र राजनीति का हो या कविताओं का अटल बिहारी वाजपेयी जैसे व्यक्तित्व का नाम इन दोनों ही सूचिकाओं में अव्व्ल स्थान रखता है। एक राजनीतिज्ञ के लिए जितना व्यवहारिक होना ज़रूरी है, एक कवि होने के लिए उतना ही भावनात्मक होना भी ज़रूरी है।अटल जी दोनों के ही संयोग से बने एक विशिष्ट व्यक्ति रहें हैं।

अटल जी की राजनीतिक पारी तो जग-जाहिर है, परमाणु परीक्षण जैसे साहसिक फ़ैसले लेने वाले अटल जी की कविताओं में भी उनके इन हौंसलों की महक महसूस की जा सकती है। उनकी कविताएँ मन को झंकृत करती हैं, वे लिखते हैं कि

प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार
समर्पण की माँग अस्वीकार
दाँव पर सब कुछ लगा है,
रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम
झुक नहीं सकते

अटल जी ने अपने जीवन काल के एक-एक क्षण को देश-सेवा और सुधार के लिए समर्पत किया है। आज अगर वह पलटकर अपने अतीत को देखते तो अपने जीवन की सार्थकता को अनुभव करते। यूं भी कवि अक्सर ही बीते समय में किसी भी प्रहर खो जाते हैं, ऐसे में अटल जी ने भी जब अपने भूतकाल पर दृष्टि डाली तो लिखा कि

सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया

पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया

इसमें कोई संदेह नहीं है कि वो देश जहाँ कण-कण में भगवान होने की शिक्षा दी जाती है और देश-प्रेम का पाठ पढ़ाया जाता है, उस देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जो कवि ह्रदय भी थें, वह देश के गौरव को कलमबंद ना करें।अटल जी की देशभक्ति से ओत-प्रोत ये कविता दिलों में जान डाल देती है-

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है
इसका कंकर-कंकर शंकर है
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये

भाषण का बेबाक अंदाज और उनकी बेलाग शैली की वजह से लोग उनके मुरीद बने। संसद में अटल की भाषण कला से जवाहर लाल नेहरू भी प्रभावित हुए। उदार छवि की वजह से अटल को विरोधी दलों के नेताओं का भी सहयोग मिला।
1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने । 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई गठबंधन सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया।

इसके अलावा विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में एक सक्रिय भूमिका निभाई।

आजीवन अविवाहित रहे अटलजी को 2015 में सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। उन्हें भारत के प्रति निस्वार्थ समर्पण और समाज की सेवा के लिए भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण ‘ दिया गया। 1994 में उन्हें भारत का ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ चुना गया। इनके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कार, सम्मान और उपाधियों से नवाजा गया।

परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों से बिना डरे वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने वर्ष 1998 में राजस्थान के पोखरण में द्वितीय परमाणु परीक्षण किया। इसकी अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए को भनक तक नहीं लग पाई।

अटल ही पहले विदेशमंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।
ऐसे महानायक को हम हमेशा याद रखेंगे।
स्वर एवम् आलेख
उषा गुप्ता इंदौर

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