कृषि विभाग किसानों को पाले के लक्षण एवं बचाव के उपाय बताने में जुटा
कोटपूतली-बहरोड़-
जिले में पाले की आशंकाओं के बीच किसानों को बता रहे बचाव के तरीके
बर्फीली हवाओं के साथ तेज सर्दी होने से पाला पड़ने की आशंका भी बढ़ रही है। इसे ध्यान में रखते हुए कृषि विभाग ने काश्तकारों को पाले के दौरान बरती जाने वाली जागरूक करना शुरू कर दिया है। सहायक निदेशक कृषि रामजी लाल यादव ने बताया कि इस संबंध में पर्यवेक्षकों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए है।
*ऐसे पड़ता है पाला*
गांवों में काश्तकारों को पाला पड़ने की आशंका को लेकर तैयारी रखने के लिए समझाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जब दिन में विशेष ठंड हो या सर्द हवा चले और दोपहर बाद में हवाएं रूक जाए, रात में आकाश साफ हो, वायु में आर्द्रता कम हो और वायुमण्डल का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से कम या 0 डिग्री तक पहुंच जाए तो पाला की आशंका रहती है।
*फसलों का बचाव इस तरह से करें*
उन्होनें बताया कि फसलों, पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यान या नकदी सब्जी वाली फसलों में भूमि का तापमान कम नहीं होने देने के लिए फसलों को टाट,पॉलिथीन अथवा भूसे से ढक देवे। वायुरोधी टाटियां हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर पश्चिम की तरफ लगाए। नर्सरी, किचन गार्डन और कीमती फसलों वाले खेतों के उत्तर पश्चिम की ओर टाटियां बांधकर क्यारी के किनारे पर लगाए तथा दिन में हटाए। जब पाला पड़ने की संभावना हो तो खेतों में जल भराव नही करें, लेकिन दिन में हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे नमी युक्त जीमल में काफी देर तक गर्मी बनी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नही होता है। जिससे तापक्रम शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नही गिरेगा। इस तरह फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
*खेतों में इसका कर सकते है छिड़काव*
संयुक्त निदेषक कृषि महेन्द्र कुमार जैन ने किसानों को सलाह दी है कि पाला पड़ने की संभावना के दिनों में फसलों पर घुलनशील गंधक 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी में) घोल बनाकर छिड़काव करें। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीतलहर व पाले की संभावना बनी रहे तो छिड़काव 15-15 दिन के अंतराल से करना चाहिए। काश्तकार थायो यूरिया 500 पीपीएम (आधा ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर) का फसल पर छिड़काव करें। सरसों, गेहूॅ, चना, जीरा एवं मटर जैसी फसलों को पाले से बचने के लिए गंधक का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधो में जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है।
*ऐसे भी कर सकते है काश्तकार फसल बचाव*
खेत की उत्तरी पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे खेजडी, बबूल, अरडू, शहतूत, शीषम लगाए। तो पाले एवं ठंडी हवाओं के झोंकों से फसलों को बचाया जा सकता है। हवा की दिशा में कचरे की ढेरिया बना कर रात को उनमें आग लगाकर धुआं करने पर निश्चित ऊंचाई पर ओस की बूंद का धुंए के कण अवशोषित कर लेंगे। इससे खेत का तापमान बढनेे पर पाले का असर नही होगा।