साहित्य:साक्षात्कार
लखनऊ की लेखिका अर्चना प्रकाश से राजीव कुमार झा की बातचीत।
प्रश्न:साहित्य की विधा कविता और कहानी में किस तरह का
अंतर ?
उत्तर : कविता और कहानी में सबसे
पहला अंतर तो गद्य व पद्य का है। न
कविता पद्यात्मक सरस भावपूर्ण
रचना है ,जो मन आत्मा को आनंदित करती है। कहते हैं –
“रसात्मकम वाक्यम काव्यम ।”
लेकिन कहानी गद्य की सबसे
प्राचीन विधा है,जो जीवन की
दुःखद या सुखद घटनाओं का
मनोहारी वृत्तांत होती है।
दूसरा प्रमुख अंतर है आकार का।
कविता चार छह आठ सोलह
पंक्तियों में लय छंदबद्ध रचना होती है।जबकि कहानी कोई
घटना या विश्लेषणात्मक, तथ्य
परक सौ दो सौ या हजार शब्दो
की एक रचना होती है।माँ कह एक कहानी !”
प्रश्न:देश में जातिवाद की समस्या की नई विसंगतियों को किस तरह रेखांकित करना चाहेंगी?
उत्तर:आज के नए संदर्भों में भारत में जातिवाद की समस्या
बढ़ी है। पहले अमीर गरीब की समस्या थी।
छुआछूत का प्रचलन था। अन मेल विवाह की विसंगतियां थीं।लेकिन अब लव
जिहाद,लिव इन,आतंकवाद,जैसी
समस्याएं हैं जो जातिवाद से प्रेरित हैं ।मुस्लिम लड़के तिवारी गुप्ता बन कर हिन्दू लड़कियों को
प्रेम के झांसे में उन्हें गुमराह करते हैं,फिर उन्हें
इस्लाम अपनाने के लिए बाध्य करते हैं।
यहाँ पर मैं बताना चाहूंगी कि मेरा
उपन्यास “सुलगते ज्वालामुखी”
सवर्ण और दलित के बीच की
खाई को मिटाकर कर उसे पाटने का
सन्देश देता है ।
कितनी हैरानी की बात है कि हम
मुस्लिम्स से रोटी बेटी का रिश्ता जोड़ लेते हैं
लेकिन दलितों से नहीं…। ऐसा क्यों हैं?
आखिर वही तो हमारी सुख सुविधा के मुख्य आधार हैं। जब दलित व सवर्ण एकता के सूत्र में बंध जाएंगे,तभी गजवाये हिन्द व
मुस्लिम तुष्टिकरण समाप्त हो जायेगा ।
प्रश्न:बेटियों के प्रति घटते
पारिवारिक प्रेम प्रसंग पर आपका
नया उपन्यास है ,उसके बारे में
बताइए ?
उत्तर : ” यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र
देवता ” इसे हम जितना कहते हैं
उससे बहुत कम मानते हैं।पिछले
कुछ वर्षों से समाज में बेटियों के
प्रति लोगों का नजरिया बदला है।
बहुत से माता पिता अब बेटी के
जन्म पर खुशियां मनाते हैं, बेटियों के कैरियर या भविष्य निर्माण के
लिए एड़ी चोटी के प्रयास भी करते हैं।
लेकिन वहीं पर बहू के लिए पत्नी
के लिए उनके नियम कानून बहुत
सख्त होते हैं।क्या वे किसी की बेटियां नहीं हैं? फिर दोहरे मानदण्ड क्यों?
दूसरी बात ये कि समाज मे बेटियों के लिए अभी भी असुरक्षा बहुत
है।स्कूल कालेज ऑफिस,रास्तों
में ,यहाँ तक कि अस्पतालों में भी
वे पुरुष कुदृष्टि से बच नहीं पाती हैं ।
इसके अलावा लव जिहाद,लिव इन,अपहरण,सामूहिक बलात्कार
ये सब भी लड़कियों के लिए अभी
भी दुश्वारियां बहुत हैं।
इन सबके बावजूद आज बेटियां
शिक्षा,विज्ञान,एरोस्पेस,हर छेत्र में
अपने परचम लहरा रही हैं ।सुनीता विलियम्स,बछेन्द्री पाल ,
सानिया मिर्जा ,पीटी ऊषा आदि
स्मरणीय नाम हैं।
प्रश्न:अपने प्रिय लेखकों के बारे में जानकारी दीजिए!
उत्तर:,वैसे तो आधुनिक व प्राचीन
सभी कवि ,साहित्यकार मुझे अच्छे लगते हैं।लेकिन कथा
साहित्य में प्रेमचंद और शिवानी
मुझे बहुत पसंद हैं।प्रेमचंद जी
कथा सम्राट हैं और कालजयी हैं।
गोदान, गबन,ईदगाह,दो बैलों
की कथा आज भी प्रासंगिक हैं।
गौरापन्त शिवानी नारी विमर्श की
लेखिका,कथाकार व उपन्यासकार हैं।विष कन्या ,
श्मशान चंपा, कृष्णकली ,मैं मुर्गा
हूं,उनकी प्रसिद्ध कथाएं हैं।इसके
अलावा संस्कृत में कालिदास ,
भवभूति, और हिंदी में मुझे
जयशंकर प्रसाद , महादेवी वर्मा अच्छे लगते हैं।
प्रश्न:अपने बचपन माता पिता पढ़ाई लिखाई के बारे में बताएं?
उत्तर: मेरा जन्म गांव में हुआ। बचपन भी यहीं व्यतीत हुआ और पढ़ाई लिखाई भी यहीं शुरू हुई । यहां जमीन पर
बैठाकर पढ़ाया जाता था। मेरे पितामह श्री अमृतलाल जी जमींदार थे,उर्दू के शायर थे और आयुर्वेद के वैद्य भी
थे।मेरी माता का निधन बचपन मे हो गया था।लेकिन मेरे पितामह
बहुत धार्मिक थे । घर में धार्मिक
वातावरण था । उसका प्रभाव मुझ पर भी है।मेरा ग्रेजुएशन लखनऊ
महिला कॉलेज से ही हुआ।फिर विवाह डॉ दया प्रकाश जी से हुआ।हम 2002 में नोएडा से
ट्रांसफर होकर लखनऊ आ गए ,
और यहीं सैटल हो गए ।मेरी पहली पुस्तक 2008 में “अर्चन करूँ तुम्हारा” प्रकाशित हुई ।उसके बाद अब तक 22 पुस्तकें
प्रकाशित हो चुकी हैं।
प्रश्न :आपकी अन्य अभिरुचियाँ क्या हैं?
उत्तर:साहित्य सृजन के अलावा
मैंने गरीब बच्चों को हैंड वर्क -ग्लास
पेंटिंग,फ्लावर मेकिंग,सिलाई
कढ़ाई, डॉल मेकिंग का निः शुल्क
प्रशिक्षण देती रही हूँ।1983 से
1997 तक मैंने अनेक विद्यालयों
में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य भी
किया ह जिसमें हिंदी इंग्लिश
संस्कृत की हायर क्लासेस को
पढ़ाया भी है।मैं बहुत अच्छी कुक
भी हूँ ,शादीशुदा बच्चों को अपने हाथों से बना कर खाना खिलाती
हूँ ।