मंतव्यलोकसभा चुनाव 2024: नीतीश कुमार अगर नायक नहीं हैं तो क्या उन्हें खलनायक कहा जा सकता है?

 

राजीव कुमार झा

यह सबको मानना होगा कि नीतीश कुमार कांग्रेस या भाजपा जैसी भारी भरकम पार्टी के नेता नहीं हैं। इसके बावजूद वह 2024 के लोक सभा चुनाव में गैर भाजपा दलों की तरफ से प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित किए जाने की आशा क्यों कर रहे थे। बिहार के मुख्यमंत्री के अपने पद के बारे में उन्होंने कभी कुछ खास नहीं कहा लेकिन पिछले सरकार के गठन के बाद बिहार में सबको लेकर सरकार चलाने का दावा उन्होंने विधान सभा में जरूर किया। सरकार को
लेकर शोर शराबे में वह सबसे शांति चाह रहे थे। राजनीति में नैतिकता और कर्तव्य भावना पर जोर दे रहे थे । यह कला उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी से सीखी । अब सत्ता पर आधारित देश के आज की राजनीति में सबकुछ तय होता है और नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने की कवायद में भाजपा को छोड़ कर उन दलों से हाथ मिलाने जब महीनों पटना से बाहर निकलकर गैर भाजपा दलों के गठबंधन के निर्माण में संलग्न दिखाई दे रहे थे तो किसी को कोई मलाल नहीं हुआ था । लेकिन उनकी इस राजनीति के अंतर्विरोध से देश नावाकिफ नहीं था। देश के इन राजनीतिक दलों के साथ उन्होंने कभी कोई राजनीति नहीं की थी लेकिन प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश में उन्होंने इन दलों के साथ भी राजनीति करने से इंकार नहीं किया। आखिरकार इंडिया गठबंधन देश के सामने आया लेकिन इस गठबंधन के नेताओं के बीच अपने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर नीतीश कुमार जब आश्वस्त नहीं हो पाए तो वे फौरन इंडिया गठबंधन से अलग होकर भाजपा नीत अपने पुराने खेमे में लौट आए। कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडिया गठबंधन की लोकसभा चुनाव 2024 में हार के
पीछे इसे सबसे महत्त्वपूर्ण कारण माना जाना चाहिए। नीतीश इस चुनाव के नायक नहीं हैं लेकिन उन्हें खलनायक भी नहीं कहा जा सकता और अपनी इसी वास्तविक छवि से वह नरेंद्र मोदी के महानायक छवि को ध्वस्त करने में भी सफल नहीं हो पाए। इसके बावजूद उन्हें अब विश्वास से उनके साथ सहयोगी के रूप में खड़ा रहना चाहिए।

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