संसार में जन्म के पहले से लेकर मृत्यु के बाद तक सबसे अहम पुलिस की भूमिका

कानपुर में अपराधियों के खिलाफ इंस्पेक्टर प्रशांत की अगुवाई में जारी गोविंद नगर में गश्त

 

– अपराधियों के खिलाफ जागरूक रहने के तरीके बता रही टीम इंस्पेक्टर प्रशांत मिश्रा

– सभी घटनाओं के सटीक खुलासे के साथ अपराधियों को जेल भेजने का सिलसिला जारी

सुनील बाजपेई
कानपुर। यहां के पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार के आदेश निर्देश और उनकी अगुवाई में कानून और शांति व्यवस्था के पक्ष में हर संभव प्रयास लगातार जारी हैं। इसके लिए उनके मातहत थाने पर आने वाली पीड़ितों की समस्याएं हल करने, हर तरह के अपराधियों के खिलाफ प्रभावी करने, दुकानदारों व्यापारियों आदि को आपराधिक घटनाओं का शिकार होने से बचने के लिए दुकानों, प्रतिष्ठानों को निर्धारित उचित समय तक ही खोलने के लिए अपील करने और लोगों को समझाने में भी कसर नहीं रख रहे।
इसी क्रम में कानून और शांति व्यवस्था के पक्ष में अपराधियों के खिलाफ लोगों को जागरूक करने में भी अग्रणी तथा आम जनता में सुरक्षा की भावना को और प्रगाढ़ करने के लिए अपराधियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई के साथ ही लगातार गश्त में भी जुटे गोविंद नगर के प्रभारी निरीक्षक इंस्पेक्टर प्रशांत कुमार मिश्रा की अगुवाई में अतिरिक्त इंस्पेक्टर अभय सिंह ,सब इंस्पेक्टर भूटान सिंह ,रतनलाल नगर के अरविंद मिश्रा समेत सभी चौकी प्रभारियों और अन्य पुलिस वालों का भी परिश्रम पूर्ण सफल प्रयास लगातार जारी है।
कुल मिलाकर कानपुर के चुनौती पूर्ण थानों में से एक गोविंद नगर में वर्तमान में नियुक्त चल रहे इंस्पेक्टर प्रशांत मिश्रा और अतिरिक्त इंस्पेक्टर अभय सिंह समेत लगभग सभी पुलिस कर्मी सकुशल लोकसभा चुनाव में अपनी सराहनीय भूमिका के निर्वहन के बाद
थाना क्षेत्र में बरकरार कुशलता की रक्षा के लिए पहले की तरह लगातार फिर तत्पर हैं।
जहां तक किसी की भी किसी भी पद या स्थान पर नियुक्ति का सवाल है। इसका भी अपना आध्यात्मिक पक्ष है, जिसके मुताबिक स्थानांतरण या किसी भी पद पर नियुक्ति के रूप में आपके कदम धरती के उस स्थान पर भी पड़ते हैं ,जहां जन्म के बाद पहले कभी नहीं पड़े होते और उन लोगों से भी मुलाकात होती है ,जिनसे पहले कभी नहीं मिले होते। कहने का आशय यह कि जैसे जन्म तय है। मृत्यु तय है। ठीक वैसे ही जन्म और मृत्यु के बीच वाले काल खण्ड यानी जीवन समय के अनुरूप यह भी तय है कि कौन , कब , कहां पर ,कब तक ,किसके साथ और संसार के संचालन की ईश्वरीय व्यवस्था में अपनी क्या भूमिका अदा करेगा।
इस आध्यात्मिक दृष्टिकोण मुताबिक अगर कोई पीड़ित और दुखी व्यक्ति सहायता के लिए आता है तो इसका मतलब है कि उसके रूप में परमेश्वर ही हमारी ,आपकी या किसी की भी सक्षमता और संपन्नता की परीक्षा लेने आया है| …और इसमें भी आपके आगे का जीवन मार्ग सुखमय होगा या दुखमय इसका भी निर्णय उस पीड़ित और दुखी व्यक्ति की दुआएं या बददुआएं करती हैं ,जो आपके पास सहायता के लिए आता है, क्योंकि किसी के प्रति भी दुआओं और बद्दुआओं के रूप में बोले गए शब्द कभी नष्ट नहीं होते। और अगर होते तो हमारी या किसी की भी मोबाइल से बात नहीं होती और ना ही वायरलेस जैसे यंत्र इसका प्रमाण बनते, क्योंकि अजर, अमर, अविनाशी अक्षर से शब्द और शब्द से बने वाक्य ही लिखने, पढ़ने और बोलने के रुप में ही इस संसार का संचालन करते हैं। मतलब अगर कुछ लिखा न जाए , पढ़ा ना जाए या आदेशात्मक रूप में कुछ कहा या बोला ना जाए तो इस संसार का संचालन हो ही नहीं सकता।
इसी संदर्भ में अगर छोटे या बड़े पद के रूप में किसी भी व्यक्ति के पुलिस विभाग में सेवारत होने का सवाल है तो किसी भी साधारण या फिर किसी सक्षम पद के रूप में पुलिस विभाग में सेवारत होना संसार के अन्य सभी पदों और विभागों की अपेक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि संसार के संचालन की ईश्वरीय व्यवस्था में जितनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका पुलिस विभाग की है, उतनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका संसार के किसी अन्य विभाग अथवा किसी अन्य सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं ,क्योंकि किसी भी पुलिस कर्मचारी और अधिकारी के रूप में यह महत्वपूर्ण भूमिका संसार में इंसान के जन्म के पहले शुरू होती है और मरने के बाद भी जारी रहती हैl यहां जन्म से पहले मतलब शिकायत पर इस आशय की जांच और विवेचना के रुप में कि पेट में बच्चा किसका है और मृत्यु के बाद भी इस आशय से कि हत्या किसने की है? मतलब इतनी बड़ी भूमिका पुलिस के अलावा संसार के किसी भी विभाग या उसके सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं है। यहां तक कि किसी की हत्या के रूप में मृत्यु के बाद व्यक्ति के कर्मों का फल दंड के रूप में, आजीवन कारावास या फांसी के रूप में दिलाने की अधिकार पूर्ण सक्षमता भी पुलिस के अलावा संसार के किसी सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं है।
खास बात है यह भी कि संसार के छोटे से लेकर बड़े से बड़े हर पुलिसकर्मी और अधिकारी का सारा धर्म ,सारा कर्म , सारी उपलब्धियां, सारी सेवाओं और जीविकोपार्जन का सारा आधार ईश्वर अंश आत्मा के धारक शरीर के लिए ,शरीर के द्वारा और शरीर से ही है। शायद इसीलिए किसी के भी प्राणों की रक्षा और सुरक्षा को संसार का सर्वोत्तम परोपकार भी माना गया है।
यही नहीं संसार के संचालन की ईश्वरीय व्यवस्था के तहत जन्म से लेकर मृत्यु तक के बीच के समय यानी जीवन को व्यक्ति के कर्मों के अनुरूप सुख या दुख में बदलने के साथ ही लोकहित के कर्म के लिए रक्षा – सुरक्षा के रूप में जीवन को बचाने और विपरीत आचरण करने पर किसी के भी जीवन को मृत्यु (मुठभेड़) के रूप में समाप्त करने की भी क्षमता सक्षम और समर्थ शरीर धारी के रूप में
वह रखता है ,जिसे पुलिस कहते हैं।
इसी से प्रमाणित होता है कि ईश्वर , अल्लाह और गॉड संसार में व्यक्ति के अच्छे बुरे कर्मों का फल पुलिस विभाग में छोटे से लेकर बड़े पद धारक कर्म योगियों के रूप में देता भी है और निहित स्वार्थ पूर्ति के लिए किए गए विपरीत आचरण पर अन्य सक्षम के माध्यम से खुद पाता भी है। यह भी सच है कि लगभग हर पुलिस कर्मी का कर्तव्य पथ उसके निजी जीवन के संदर्भ में बहुत कंटक पूर्ण भी होता है। फिर भी वह इन सभी जूझते हुए देश और समाज के हित में अपने कर्तव्य का पालन करने में कसर नहीं रखता। शायद इसीलिए किसी ने कहा है –
अपने दुख सब भूल कर, परहित जान गंवाय।
नींद, नारि ,भोजन तजे, वही पुलिस में जाय
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