नववर्ष पर विशेष हावी रहा स्वार्थ का जाल, सच कहता मैं बीता साल

 

मैं 2024 अब आपके जीवन से हमेशा के लिए चला गया हूं ,लेकिन मुझे इस बात का बहुत दुख हमेशा रहेगा कि आपने मेरे आगमन की खुशी में जो वादा किया था, उससे आप पूरी तरह से मुकर गए ,मुझ बीते 2024 की नजर में जिसकी एक मात्र वजह आपका स्वार्थ ही है, जिसके आधार पर मैं कह सकता हूं आपकी वजह से ही सामाजिक जीवन में लगातार हिंसा, अन्याय, असभ्यता, घृणा और झूठ पहले की तरह ही बरकरार है। सत्य अक्सर आज भी दम तोड़ता ही दिख रहा है।
मेरे यानी बीते 2024 के मेरे कालखंड में देश का मध्यम वर्ग जिस तरह से नफरत और झूठ के पीछे खड़ा रहा , वह वाकई बेहद निराशाजनक है। सत्य काफी हद तक सिमट गया है और इस पर यकीन करने और इस पर चलने वाले लोग भी अब ना के बराबर रह गये हैं।
मैं आपका बीता साल 2024 आपसे यह भी कहने से नहीं चूकना चाहता कि मीडिया और धार्मिक नेतृत्व दोनों ही एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था और उसके बचाव में मुखर हो गए हैं जो निहायत बेशर्मी से कपट, साजिश और बांटने वाले कामों में लिप्त हैं।
मैंने यानी आपके बीते हुए इस साल 2024 ने अपने पूरे कालखंड में यह भी देखा कि संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोग न केवल नैतिकता खोते जा रहे हैं बल्कि उनमें निष्पक्षता की भावना भी खतरनाक हालातों तक कमजोर होती जा रही है।
मैं 2024आपको यह भी बताना चाहता हूं कि मेरे पूरे समय में न्यायालय के फैसलों पर भी कई सवाल उभरे, खास तौर से निचली अदालतों के फैसले काफी सवालों के घेरे में रहे ,लेकिन इसके विपरीत मुझ 2024 को खुशी इस बात की भी है कि मैंने अपने इस कालखंड में लोकतांत्रिक भावना और व्यवहार की मजबूती के लिए आवश्यक एक सक्रिय और मजबूत विपक्ष का उदय होते हुए भी देखा। इसके फलस्वरूप शायद संविधान को और कमजोर होने से फिलहाल तो बचा लिया गया है, लेकिन आजादी, समानता, न्याय और बंधुत्व के बुनियादी मूल्य फिलहाल गहरे खतरे से बाहर अब भी नहीं माने जा सकते, क्योंकि बीते हुए मुझ 2024 को ऐसा लगता है कि धर्म अपनी बहुलता आधारित आध्यात्मिकता और सूक्ष्म दृष्टि से निरंतर दूर होता ही जा रहा है। मेरी नजर में आस्था की जगह कर्मकांड ने ले ली है ,जिसे एक चका चौंध तमाशा के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता।
जैसा कि मैं 2024 ने अपने पूरे समय में यह भी स्पष्ट रूप से अनुभव किया कि शिक्षा जगत की स्वायत्तता भी बहुत निराशा जनक तरीके से कम होती जा रही है, जिसकी वजह से ही ज्ञान को हाशिये पर धकेलने वाले भी अपने लाभदायक इरादे में सफल हैं।मतलब अज्ञानता को सामाजिक रूप से सुदृढ़ किया जा रहा है।
मुझ 2024 को अपने ही समय में यह भी देखने को मिला कि वैश्विक भूख सूचकांक रैंकिंग में अपने देश भारत की हालत चिंता जनक होने की हद तक बेहद खराब हो गई है।
हो सकता है कि बहुत से लोग सहमत ना हो फिर भी मैं 2024 डंके चोंट पर यह भी दावा करता हूं कि देश की लगभग 50 फीसद संपत्ति 5 फीसद आबादी के पास है। यही नहीं वेतनभोगी वर्ग के 50 फीसद लोगों को अपनी आय में 13 फीसद की कमी की पीड़ा भी झेलनी पड़ रही है। जिससे निराशा का भाव भी आत्मघाती हालात तक खतरनाक हो चुका है।
फिर भी मैं चाहूंगा कि हमारे आपके नए साथी 2025 का कालखंड कुछ ऐसा हो, जिससे हम निराशा में पड़ने से बच सकें।
मैं आपका बीता हुआ 2024 हालातों के विपरीत यह भी भरोसा दिलाना चाहता हूं कि एक समय आएगा जब पापों के बोझ से नफरत और झूठ की इमारत भरभराकर अवश्य ही गिर जाएगी। बेशक अभी सच हाशिये पर दम तोड़ता दिख रहा हो लेकिन आखिर में जीत आपके सत्य पूर्ण आचरण की ही होगी। ईश्वर, अल्लाह तथा गॉड से प्रार्थना और इबादत करता हूं कि मैं 2024 तो आपके जीवन से हमेशा के लिए चला गया हूं लेकिन हमारा और आपका आ चुका नया साथी 2025 देश और समाज के हित में आपके हर इरादे को अवश्य ही सफल बनाएं । नहीं किसी का भय हो मतलब नव वर्ष मंगलमय हो।

प्रस्तुति –
*सुनील बाजपेई*
(कवि ,गीतकार ,लेखक एवं
वरिष्ठ पत्रकार),
कानपुर
उत्तर प्रदेश।
7985473020
9839040294

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