काकोरी कांड( रेल एक्शन) के अमर शहीदों की शहादत…

दिसंबर ‘शहादत दिवस’ पर विशेष

 

लाल बिहारी लाल
नयी दिल्ली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर, 1885 को होने के बाद भारत की स्वतंत्रता के लिए लोग में आजादी की लड़ाई संगठित रुप से लड़ने की एक योजना बनी, और सन 1905 तक कांग्रेस में नरम दल का दबदवा रहा। लेकिन सन 1907 स्वतंत्रता सेनानियों के दो दल बन गए एक ‘नरम दल’ और दूसरा ‘गरम दल’। लेकिन ‘नरम दल’ और ‘गरम दल’ के लोग समानांतर रुप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लगे थे। गरम दल को अपनी लड़ाई लड़ने के लिए संसाधन की कमी थी, उनका उद्देश्य था किसी भी तरह ब्रिटिश सरकार (अँगरेज़ सरकार) को कमजोर करना। साथ ही, गरम दल के लोग उन देशी रियासत को भी अपने टारगेट में रखते थे जो अंग्रेजों की चाटुकारिता और उनके मुखबिर थे। उन्होंने अंगेजों की कमजोर करने के लिए सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई। इसमें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के तहत पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की अगुआई में 9 अगस्त, 1925 को 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ रेल को काकोरी के पास चैन पुलिंग कर रोक दिया गया, जिसमें बिस्मिल के साथ, राजेन्द्र लहड़ी, अशफाक उल्ला खाँ, ठाकुर रोशन सिंह, पं.चंद्रशेखर आजाद सहित 10 लोगों ने 8000 रु. लूटने के नियत से ट्रेन को रोका पर 4000 रु ही लूटने में कामयाब हो सके।
इसे अंग्रेजों ने डकैती की संज्ञा दी और 40 लोगों को हिरासत में लिया, परन्तु चंद्रशेखर आजाद गिरफ्तार नहीं हो सके। जिसमें पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्लाह खां को फांसी हुई । 17 दिसंबर 1927 को सबसे पहले गांडा जेल में राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को फांसी दी गई इनके बाद 19 दिसंबर, 1927 को पं. रामप्रसाद बिस्मिल गोरखपुर जेल में फांसी दी गयी, ठाकुर रोशन सिंह जिन्हें इलाहाबाद में फांसी दी गई और अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद में फांसी दी गई। 16 लोगों को 4 साल तक काला पानी की सजा, 2 लोग को सरकारी गवाह बनने पर छोड़ दिया गया, बाकी लोगों को मुक्त कर दिया गया। उन्हीं की याद में गैर-सरकारी सामाजिक संगठन ‘हमसाया’ ने काकोरी घटना के सौ साल पूरे होने पर काकोरी के शहीदों की शहादत पर ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य की राजनीतिक दशा और दिशा’ श्रृंखला-4, पर एक व्याख्यान का आयोजन 22 दिसम्बर, 2024 को लाल किरण भवन, मीठापुर चौक, मीठापुर बदरपुर नयी दिल्ली में किया। इस व्याख्यान के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक डॉ. सिद्धार्थ रामू थे। उन्होंने कहा कि काकोरी के शहीदों का हमारे स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान है। इनकी शहाद को हम लोग भूला नहीं सकते हैं। इन लोगों ने आजादी के लिए हंसते-हंसते शहीद हो गये। ऐसे वीर सपुत को मेरा शत-शत सलाम है। इस अवसर पर कई लेखक, बुद्धिजीवी एवं समाजसेवी वहां उपस्थित थे।

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