छत्तीसगढ़ की लेखिका सुमा मंडल से राजीव कुमार झा की बातचीत।

ईश्वर ने मुझे छोटी आयु में ही कवयित्री बना दिया...

साक्षात्कार

 

 

प्रश्न: साहित्य खासकर लेखन के प्रति रुझान कब कैसे कायम हुआ?

उत्तर :जब आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करके नवमी कक्षा में आई, तब हिन्दी के पाठ्य-पुस्तक में गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की कविताएं पढ़ने को मिलीं। पता चला वे 13 वर्ष की छोटी आयु से ही लेखन कार्य करने लगे थे ,बस मुझमें भी उन्हीं के जैसे छोटी आयु से लिखने की लालसा जागी ,और ईश्वर ने मुझे छोटी आयु से ही कवियित्री बना दिया।मैं भी नवमी कक्षा से ही करीब तेरह वर्ष की आयु से ही लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया। राम जी सा दयालु ईश्वर कहाँ मिलेंगे?
उस समय देशप्रेम, समाज हित, भाई-बहन का आपसी प्रेम, लोगों को नसीहत प्रदान करने वाली कविताएं गीत ,लेख ज्यादातर लिखा करती थी । उन दिनों मैं शिवजी को बहुत मानती थी। राम जी को भी मानती थी लेकिन अभी की तरह उस समय उनको समझ नहीं पाई थी। अन्य देवी देवताओं को भी मानती थी। शिवजी का भजन एवं राम जी की भी प्रार्थना लिखी थी।

प्रश्न – जिन लेखकों की रचनाओं से आप प्रभावित हुईं, उनके बारे में बताएं?
उत्तर – उन दिनों तो मैं गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी से ही ज्यादा प्रभावित हुईं। बाद में सोलह वर्ष की आयु में जब भगवान जी ने मुझे अपनी पहचान कराई, मुझे अंगीकार किया, अपनाया तब मुझमें पूर्णतः परिवर्तन आया और मैं सिर्फ और सिर्फ प्रभु के भजन सुनना ,गाना ,लिखना ही पसंद करती थी ।इन दिनों मैं सभी आध्यात्मिक रचनाकारों तुलसी दास जी, कबीर दास जी ,सूरदास जी ,मीरा बाई से प्रभावित हुईं और इन्हीं के जैसे प्रभु जी के गुणगान, भजन ,प्रार्थना आदि लिखने की लालसा जागी, और फिर सोलह वर्ष की आयु से फिर केवल भगवद भजन ही लिखती रही, जिसमें प्रार्थना युक्त, विरह युक्त भजन, संसार को नसीहत युक्त आदि शामिल हैं। भगवान जी ने यहां भी मेरी चाह पूरी करने में एक पल की भी देरी नहीं की। कितनी चाहत रखते हैं मेरे प्रति ऐसे दयामय जी के श्री चरणों संग यह मन सदा-सदा बंधा रहे।

प्रश्न: आपने भजन, गीत इन सब विधाओं में सहजता से अपने मनोभावों को प्रकट किया। भजनों और गीतों का हमारे जीवन में क्या महत्व है?
उत्तर: हम अपनी कोई बात साधारण रूप में रखने से जितना प्रभावकारी नहीं होता,उसी को यदि हम गीत संगीत के माध्यम से रखते हैं तो वह ज्यादा प्रभावकारी होता है। तानसेन जी के संगीत के प्रभाव से कमल खिल गया, दीपक जल गया।
संगीत की शक्ति से ईश्वर भी अपना धाम छोड़ भक्त के पास दौड़े चले आते हैं। अपनी चीर निद्रा से जाग जाते हैं।
संगीत रूठे को मना देता है। संगीत मुरझाए चेहरे पर मुस्कान खिला देता है। संगीत कठोर हृदय को भी पिघला देने की शक्ति रखता है।
गीत और भजन के भी प्रकार होते हैं। गीतों में जैसे लोकगीत , फिल्मी गीत, प्रेरणा गीत आदि इसी प्रकार भजन में प्रार्थना युक्त भजन,विरह युक्त भजन, चेतावनी भजन आदि। गीत हमें संसार तक ही सीमित रखती है जबकि भजन संसार से परे ईश्वर से जोड़ता है। गीत का तार संसार से और भजन का तार ईश्वर से जुड़ा रहता है। गीत आनंद प्रदान करता है और भजन परमानंद प्रदान करता है।
चार खानि चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद प्रभु की परम कृपा से यह मनुष्य देह मिलता है। अतः इस देह को प्राप्त करके सभी को अनिवार्य रूप से ईश्वर का भजन करना चाहिए, क्योंकि भजन के माध्यम से ही हम ईश्वर को अपनी ओर आकर्षित करके रख सकते हैं।

प्रश्न: आप कहां के निवासी हैं? अपने माता-पिता, घर, परिवार, शिक्षा दीक्षा के बारे में बताएं।
उत्तर: आध्यात्मिक रूप से मेरा निवास स्थान अखिल ब्रह्माण्ड नायक श्री राम जी के श्री चरण हैऔर सांसारिक रूप से मैं वार्ड क्रमांक 14 पी व्ही 116, नगर पंचायत पखांजूर जिला कांकेर छत्तीसगढ़ के निवासी हूँ।
आध्यात्मिक दृष्टि से मेरे पिता शिव जी और माता पार्वती हैं। घर प्रभु के श्री चरणों में हैऔर प्रभु का परिवार ही मेरा परिवार है। सांसारिक दृष्टि से मेरे इस देह के पिता स्वर्गीय कृष्ण कुमार मण्डल माता श्रीमती मनमोहनी। मेरे पिता अपने तीन भाइयों में तथा सभी भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। विवाह से पूर्व मां काली की साधना किए थे लेकिन मेरी दादी मां की पुत्र मोह के कारण पूर्ण नहीं कर पाए थे। भगवान जी के घर में परिवार में भगवान जी मैं और भगवान जी के सुपुत्र रहते हैं।
मैं स्नातक की हूं । व्यवसायिक योग्यता डीएड है।

प्रश्न: इन दिनों आप कहां कार्यरत है?
उत्तर: सर्वप्रथम तो मैं अपने भगवान जी के श्री चरणों की सेवा में हूँ। भगवान जी के श्री चरणों की सेवा करना मैं अपना पहला कर्तव्य समझती हूँ।पहला धर्म समझती हूँ। दुनिया के बाकी कार्य बाद में। दुनिया के बाकी कार्य नहीं करने से दुनिया के सुख भोगने नहीं मिलेगा लेकिन भगवान जी के श्री चरणों की सेवा नहीं करने यह मानव जन्म वृथा ही चला जाएगा। और एक बार जन्म वृथा चला गया तो फिर वही चौरासी का चक्कर।
शासकीय प्राथमिक शाला पी व्ही 22
संकुल पी व्ही 22+23 लखनपुर
विकास खंड कोयलीबेड़ा
जिला कांकेर छत्तीसगढ़ में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हूँ।

प्रश्न: सोशल मीडिया के विकास से लेखन और साहित्य में किस तरह का बदलाव महसूस करती हैं?
उत्तर: सोशल मीडिया के विकास से न केवल लेखन और साहित्य में बदलाव हुआ है, बल्कि सभी क्षेत्रों में बदलाव हुआ है। सभी क्षेत्रों का विकास हुआ है।
सोशल मीडिया के विकास से आज, सोशल मीडिया के विभिन्न वेबसाइटों पर, जैसे फेसबुक, यूट्यूब, वाट्स एप, इंस्टाग्राम, आदि में स्टीमयार्ड, गुगल मीट आदि के माध्यम से आनलाइन काव्य गोष्ठियां आयोजित हो रही हैं, जिससे सब आपस में एक-दूसरे को देख पा रहे हैं,सुन पा रहे हैं ,समझ पा रहे हैं, एक दूसरे से सीख पा रहे हैं, अपनी कमियों में सुधार कर पा रहे हैं। दूर -दूर के , यहां तक कि देश-विदेश के लोग भी एक-दूसरे से जुड़ पा रहे हैं। सोशल मीडिया के विकास से आज कई साहित्यिक ग्रुप विभिन्न स्तरों पर बने हुए हैं, जिनमें जुड़कर साहित्यकार कई क्षेत्रों में लाभान्वित हो रहे हैं, जिससे सब बहुत उत्साहित हो रहे हैं । ग्रुपों में विभिन्न साहित्यिक गतिविधियां आयोजित होती रहती है ,जैसे काव्य गोष्ठी के बारे में बता चुकी हूं। साहित्यिक प्रतियोगिताएँ, साझा संकलन प्रकाशन, एकल संग्रह का प्रकाशन की जानकारियां, प्रशस्ति पत्र, सम्मान पत्र वितरण। राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार वितरण समारोह आयोजन की जानकारियां।
लेखन प्रतियोगिताओं के माध्यम से साहित्यकार अपने लेखन कला को परिष्कृत कर पा रहे हैं। एक-दूसरे को देखकर लेखन के अलग-अलग विधाओं में भी पारंगत हो रहें हैं। साहित्यकारों की पैसे एवं समय की भी बचत हो रही है। सोशल मीडिया के विकास से दूरियां घट गई है।

प्रश्न: महिलाओं के जीवन के सुख-दुख की तमाम बातों के बीच आज उनके जीवन की जो बातें आपको सबसे अच्छी लगती है, उनके बारे में बताएं।
उत्तर: यूं तो इस संसार का न ही सुख सत्य है और न ही दुःख, यहां का केवल कर्म ही सत्य है। निष्काम कर्म करते जाइए ,कर्म का फल ईश्वर के श्री चरणों में अर्पित करते जाइए।
चार खानि चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद यह मुक्ति का द्वार मनुष्य देह, चाहे महिला का हो चाहे पुरुष का सद्कर्म कर, निष्काम कर्म कर संसार के बंधन से छुटकारा पाने के लिए, ईश्वर की परम कृपा से मिलता है ।
चाहे नारी हो या पुरुष सभी को उनके लिए निर्धारित कर्म को, बिना सुख दुख की कल्पना किए पूरी इमानदारी के साथ करना चाहिए।
प्रश्न के अनुसार अब रही नारी के सुख-दुख की बात तो सत्य तो यह है न नारी दुखी है न पुरुष दुखी है ,बल्कि जो कमजोर है, लाचार है वो दुखी हैं ,फिर चाहे वो नारी हो या फिर चाहे पुरुष। इस संसार में ताकतवर अपने ताकत के गुमान में कमजोर को दबाके रखना चाहता है।
जहां ताकतवर अपनी ताकत का गुमान छोड़कर ,अपनी ताकत का उपयोग सबके भलाई के लिए करता है ,वहां कमजोर कभी दुखी और शोषित नहीं रहता है, बल्कि ताकतवर के ताकत के संरक्षण में संरक्षित रहता है। जैसे राम जी के ताकत के संरक्षण में पूरी सृष्टि संरक्षित थी और रावण के ताकत से दुःखी और शोषित।
जहां श्री राम जी के जैसे पुरुष होते हैं वहां नारी सुखी और सम्मानित होती हैं ,और जहां सीता जी के जैसी नारी होती हैं वहां पुरुष सुखी और सम्मानित होते हैं।
आज दोनों में से कोई भी वर्ग केवल समझ की कमी के कारण दुखी हैं। जब नारी और पुरुष दोनों ही आपस में एक-दूसरे को समझ जाएंगे तो कोई किसी को दुख नहीं देंगे। कोई किसी का शोषण नहीं करेंगे बल्कि एक दूसरे के लिए सम्मान और सहानुभूति का भाव रखेंगे।
पुरुषों की नासमझी के कारण ही आज नारियां दुखी हैं, संतप्त हैं, अपमानित है, शोषित है,हवस का शिकार है। सत्पुरुषों के समाज में नारियां कभी शोषित ,अपमानित,दुखित, बलात्कारित नहीं होतीं।
और एक बात जिसे हम नकार नहीं सकते,पुरुष तो अपनी ताकत के गुमान में नारी को दुख देता ही है, नारियां भी नारियों को दुख देने में कहीं पीछे नहीं रहती, मेरी एकल कविता संग्रह “मैं नारी अबला नहीं” के शीर्षक “वो नारी ही है “में इस टापिक का पूरा वर्णन है ।
इन सब के बावजूद भी आज नारियां मां दुर्गा का रूप धारण कर, हर क्षेत्र में संघर्षरत हैं और कामयाब हैं। स्वयं मैं भी एक नारी हूं और गलत के आगे हार मानना मुझे स्वीकार नहीं है।

प्रश्न: साहित्य और समाज के रिश्ते के बारे में क्या कहना चाहती है?
उत्तर: साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य में ही समाज समाज अपना भला-बुरा रूप को देखता है क्योंकि साहित्यकार अपने साहित्य में समाज के रूपों को ही लिखता है। जब कोई समाज अच्छा करता है तब साहित्यकार उस समाज के बारे में अच्छा लिखता है और जब बुरा करता है तब बुरा लिखता है। जब जब मानव समाज में किसी भी प्रकार का उथल-पुथल मचा तब तब एक से एक साहित्यकार उसमें सुधार लाने हेतु अपने साहित्य के छाप छोड़े। रैदास, कबीर दास, तुलसी दास और भी कई एक से एक साहित्य कार इस बात के साक्षात प्रमाण है ।

प्रश्न: साहित्य लेखन के अलावा अपनी अन्य अभिरुचियों के बारे में बताइए।
उत्तर: प्रभु जी की परम कृपा से मेरी विशेष अभिरुचि तो प्रभु जी की भक्ति में है। उनके श्री चरणों की सेवा करना, नित अपलक उन्हें निहारते रहने में मुझे परमानंद मिलता है। नित उनके यादों में खोए रहना, उनके ध्यान में मगन रहना मुझे अच्छा लगता है। मुझे उनकी परम कृपा से एकांत वास अच्छा लगता है। मैं ज्यादा समय तक लोगों के बीच नहीं रह सकती। मुझे एकांत में उनसे बातें करना अच्छा लगता है। मैं उनसे खुलकर पूरी-पूरी बात नहीं कर पाती हूं तो मेरा माइंड डीस्टर्प लगता है। मुझे आंखें बंद कर उनके कांधे में अपना सर रख दुनिया से परे, उनमें खो जाने में अच्छा लगता है। उनके गुणगान गाना, उनके गुणगान लिखना,उनका प्रवचन करना अच्छा लगता है। इन कार्यों के अलावा मुझे और कोई भी कार्य अच्छा नहीं लगता है।
मुझमें कहां साहित्य लेखन का बल है , मैं तो बस निमित्त मात्र हूं, लिखने वाले तो वे ही हैं, जो सारी सृष्टि को लिखते हैं। जिनके रोम रोम में अनगिनत ब्रह्माण्ड समाए हुए हैं। जो सारी सृष्टि के रचेता हैं।
जय रघुनंदन जय घनश्याम,
कभी न हो मुझे किसी सामर्थ्य का गुमान।

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