राहुल झा, एक ऐसा नाम जो उन लोगों के लिए परिचय का मोहताज नहीं

*राहुल झा, एक ऐसा नाम जो उन लोगों के लिए परिचय का मोहताज नहीं है जो इन्हें जानते हैं। बिहार के एक छोटे से गांव से मुंबई तक का सफर बड़ी छोटी उम्र में अपनी प्रतिभा के बल पर इन्होंने बहुत जल्द तय किया, जो काफी सराहनीय है।*

*एक ऐसा प्रतिभाशाली नौजवान जिन्होंने बिना फिल्मी बैकग्राउंड होने के पश्चात भी अपने हुनर और प्रतिभा से कई जाने माने टी वी सीरियल्स का एक सहायक निर्देशक के रूप में निर्देशन किया। जैसे :*
*1. भाभी जी घर पर हैं & टी वी पर,*
*2. गुम है किसी के प्यार में (भाग 1 और भाग 2) स्टार प्लस,*
*3. दास्तान ए मुहब्बत सलीम अनारकली कलर्स पर,*
*4. मनमोहनी जी टी वी पर,*
*5. जीजाजी छत पर हैं सब टी वी पर,*
*6. श्याम तुलसी जी गंगा पर.*

*दोस्तों, राहुल झा द्वारा निर्देशित इन सभी जाने माने टी वी सीरियल्स को आपने कभी न कभी अवश्य देखा होगा। अतः उनकी प्रतिभा का आंकलन कर उसपर टिप्पणी करना अब व्यर्थ होगा, क्योंकि उन्होंने बड़े बैनर पर यह साबित करके दिखा दिया है।*

*इसके पश्चात राहुल जी ने स्वतंत्र रूप से एक निर्देशक के रूप में “बिटिया” नाम की एक लघु फिल्म बनाई, जो काफी सराहनीय थीं।*

*और अब एक और लघु फिल्म “यू टर्न” का निर्देशन राहुल झा जैसे प्रतिभवान व्यक्तित्व द्वारा हाल ही में संपन्न हुआ है। अतः इस फिल्म के विषय पर मैं चार शब्द लिखना चाहूंगा।*

*”यू टर्न” फिल्म का नाम ही अपने आप में इसकी कहानी का एक सशक्त आधार है। यानी इस फिल्म की कहानी गांव से शुरू होकर अंत में गांव पर खत्म होती है। इस फिल्म में यह दर्शाया गया है की आखिर अपना गांव गांव ही होता हैं और परिवार और उनके संस्कारों के मूल्य की जगह कोई और नहीं ले सकता है।*

*अतः यह फिल्म इन सभी नैतिकता का बोध बहुत ही खूबसूरती से कराती है। आपको याद होगा पंकज उधास द्वारा गाया वो गीत “चिट्ठी आई हैं” जहां परदेस में बैठे भारतीयों को यह गीत सुनकर अपना वतन अपनी मिट्टी याद आती है। ठीक वैसी ही भावनात्मक पटकथा इस यू टर्न फिल्म की भी है, जिसमे नायक एक सपना लेकर गांव छोड़कर शहर आता है और सफल भी हो जाता है, परंतु यहां उसका कोई अपना नहीं, जैसे सब कुछ पराया सा। रात दिन उसके एहसास में न वो अपना सा परिवार, न वो गांव, न वो संस्कार और न ही वो उसके अपने, यह सब जैसे बहुत पीछे छूट जाते हैं, और जीवन जैसे खोखला और बेमानी सा हो जाता है।*

*यहां तक की वो इस खालीपन को मिटाने की कोशिश भीं करता हैं, और अपने पिता को शहर लेकर आता हैं, ताकि उन्हें यह एहसास करा सके की गांव छोड़कर उसने कोई गलती नहीं की और साथ ही उन्हें वो सब सुख दे सके जो एक पिता अपने बेटे से उम्मीद करता है।*

*परंतु शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी में वो अपने पिता तक को समय नहीं दे पाता है। और फिर ठीक यहीं बाप बेटे के वार्तालाप में कहानी में यू टर्न आता है, और फिर………..*

*आगे आप इस फिल्म को देखिए जिसमे अपोलो हॉस्पिटल के जाने माने डॉक्टर श्री अशोक शर्मा जो इसमें एक पिता की भूमिका निभा रहे है, उन्होंने बड़ी ही सहजता से अपना किरदार निभाया है, जो कबीले तारीफ है। सहजता यानी एकदम नेचुरल एक्टिंग, यह वो कला है जिसको बड़े बड़े कलाकार एन एफ डी सी जैसे फिल्म संस्थानों से सीखते आए हैं, और इसमें महारथ हासिल करने के लिए अक्सर वर्षों लग जाते हैं।*

*मुझे लगता है कि चार शब्द कहकर मैं कुछ ज्यादा लिख गया हूं, लेकिन कहना अभी भी बहुत कुछ बाकी है, क्योंकि मामला यहां एक नहीं कई प्रतिभाओं का है, जिन्हे थोड़े शब्द में बयान करना नामुमकिन था। बहरहाल, राहुल झा द्वारा इस फिल्म का निर्देशन एक बार फिर कमाल का है, और मेरी दर्शकों से यह गुजारिश है कि इस फिल्म को अवश्य देखें और ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का मनोबल बढ़ाएं।*

*मेरी शुभकामनाएं हमेशा राहुल जी एवं उनकी समस्त टीम के साथ हैं, ईश्वर इन सभी प्रतिभावान कला प्रेमियों को सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचाते हुए अपार यश कीर्ति धन धान्य प्रदान करे …….तथास्तु !!*

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