राज्यों से कृषि नीति तैयार करने और किसान संगठनों तक पहुंचाने की एआईकेसीसी बनाई योजना*
एक बैठक के लिए श्री राहुल गांधी से संपर्क किया मगर नहीं हुई मुलाकात
नई दिल्ली। अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति (एआईकेसीसी) ने बुधवार को केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों से किसानों के हित में एक व्यापक ‘कृषि नीति’ बनाने का आग्रह किया। इसने केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर नीति निर्माताओं से न्यूनतम अवधि के लिए नीति में स्थिरता बनाए रखने का भी आग्रह किया।
नई दिल्ली में स्वर्गीय श्री शरद जोशी की स्मृति में आयोजित दो दिवसीय चिंतन शिविर के अंत में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, पूर्व राज्यसभा सदस्य और एआईकेसीसी के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने कहा, “हमारी 60% से अधिक आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। कई बार केंद्र और राज्य के बीच विभिन्न मुद्दों पर टकराव होता है, लेकिन ज्यादातर राज्यों के पास अपनी कोई कृषि नीति नहीं है, इसलिए इस बात की सख्त जरूरत है कि राज्य सरकारें इस संबंध में एक नीति बनायें जिससे नीतिगत स्थिरता आएगी जो आज के समय की मांग है।”
मान ने कहा, “बार-बार नीतिगत बदलाव से किसानों को सबसे ज़्यादा नुकसान होता हैं और इसलिए नीति में निरंतरता बनाए रखना ज़रूरी है। इससे कृषि निर्यात को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।”
एआईकेसीसी इस नीति पर काम कर रही है और इसे आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न किसान संगठनों और राजनीतिक नेताओं से मिल रही है। दिलचस्प बात यह है कि एआईकेसीसी और इसके 29 राज्य प्रतिनिधियों ने पूर्व राज्यसभा सांसद श्री भूपिंदर सिंह मान के नेतृत्व में एक संभावित बैठक के लिए संसद में विपक्ष के नेता श्री गांधी से संपर्क किया है। किसान संगठन राहुल गांधी को ज्ञापन देना चाहते थे, लेकिन श्री राहुल गांधी ने अभी तक बैठक के लिए समय नहीं दिया है ।
दो दिवसीय चिंतन शिविर में नीति निर्माताओं, टेक्नोक्रेटों और कृषि नेताओं को एक साथ लाया गया, ताकि भारतीय कृषि में वर्तमान चुनौतियों और अवसरों की जांच की जा सके, जिसमें तकनीकी नवाचार और नीति सुधार पर जोर दिया जा सके।
एआईकेसीसी के उपाध्यक्ष बिनोद आनंद ने भारत के लिए अपने कृषि डेटा पर संप्रभुता बनाए रखने की रणनीतिक आवश्यकता के बारे में बात की। उन्होंने डेटा प्रबंधन को विदेशी निगमों को आउटसोर्स करने के खिलाफ चेतावनी दी और इस बात पर जोर दिया कि भारत को अपने कृषि भविष्य को नियंत्रित करना चाहिए। आनंद ने एक राष्ट्रीय कृषि मूल्य श्रृंखला नीति के निर्माण पर भी जोर दिया जो किसानों को उचित बाजार देकर यह सुनिश्चित करेगी कि उन्हें उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्राप्त हो। उन्होंने आगे एक सुझाव दिया कि प्रत्येक क्षेत्र के 10,000 से 15,000 किसानों को किसान हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए संगठित किया जाए, जिससे लंबे समय से चले आ रहे उन कानूनी विवादों से झुटकारा मिले जो भारत के कृषि समुदाय को परेशान कर रहे हैं।
इससे पहले दो दिवसीय चिंतन शिविर के दौरान, पूर्व राज्यसभा संसद सदस्य और एआईकेसीसी के अध्यक्ष श्री भूपिंदर सिंह मान ने भारतीय किसानों को होने वाले संवैधानिक और आर्थिक कठिनाइयों की चर्चा की शुरुआत की थी जो किसान विकास में बाधक हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि तकनीकी प्रगति के बावजूद, भारत में खेती अभी भी संकट में है। कृषि में बढ़ती कॉर्पोरेट भागीदारी के साथ श्री मान ने इस बात पर भी जोर दिया कि सीमांत किसान जो गैर-शहरी क्षेत्रों में रहते है वो पीछे न रहें। उन्होंने कृषि में दक्षता और लाभप्रदता बढ़ाने वाली उन्नत प्रौद्योगिकियों तक आसान पहुंच की सुविधा प्रदान करते हुए किसानों के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति की आवश्यकता पर जोर दिया।
वहीं एआईकेसीसी के महासचिव, गुणवंत पाटिल ने सरकार और इसकी विभिन्न नीतियों पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि वर्तमान कृषि डेटा का एक बड़ा हिस्सा अविश्वसनीय है और अक्सर बाजार की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए इसे हेरफेर किया जाता है। प्रौद्योगिकी को अपनाकर, भारत सटीक खेती के एक नए युग में प्रवेश कर सकता है, जिससे किसान और उपभोक्ता दोनों लाभान्वित हो सकते हैं।
कार्यक्रम का माहौल तब गंभीर हो गया जब बिहार के किसान मनवंत सिंह ने अपने राज्य में किसानों को आने वाली चुनौतियों के बारे में बात की, जबकि बिहार की मिट्टी उपजाऊ है। सिंह ने बताया कि बिहार में केवल छह महीने की खेती होती है, जबकि बाकी साल सूखे या बाढ़ के कारण बर्बाद हो जाता है। एक व्यापक, राष्ट्रव्यापी कृषि नीति की अनुपस्थिति, साथ ही वित्तीय अस्थिरता, बिहार के किसानों को संघर्षरत छोड़ देती है। उन्होंने सरकार से प्रत्येक क्षेत्र के किसानों की अनूठी आवश्यकताओं को संबोधित करने और उनकी स्थानीय वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाने का आग्रह किया।